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वेद्या॒ वेदिः॒ समा॑प्यते ब॒र्हिषा॑ ब॒र्हिरि॑न्द्रि॒यम्। यूपे॑न॒ यूप॑ऽआप्यते॒ प्रणी॑तोऽअ॒ग्निर॒ग्निना॑ ॥१७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वेद्या॑। वेदिः॑। सम्। आ॒प्य॒ते॒। ब॒र्हिषा॑। ब॒र्हिः। इ॒न्द्रि॒यम्। यूपे॑न। यूपः॑। आ॒प्य॒ते॒। प्रणी॑तः। प्रनी॑त इति॒ प्रऽनी॑तः। अ॒ग्निः। अ॒ग्निना॑ ॥१७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:17


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

किन जनों के कार्य्य सिद्ध होते हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् लोग (वेद्या) यज्ञ की सामग्री से (वेदिः) वेदि और (बर्हिषा) महान् पुरुषार्थ से (बर्हिः) बड़ा (इन्द्रियम्) धन (समाप्यते) अच्छे प्रकार प्राप्त किया जाता है, (यूपेन) मिले हुए वा पृथक्-पृथक् व्यवहार से (यूपः) मिला हुआ व्यवहार के यत्न का प्रकाश और (अग्निना) बिजुली आदि अग्नि से (प्रणीतः) अच्छे प्रकार सम्मिलित (अग्निः) अग्नि (आप्यते) प्राप्त कराया जाता है, वैसे ही तुम लोग भी साधनों से साधन मिला कर सब सुखों को प्राप्त होओ ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य उत्तम साधन से साध्य कार्य्य को सिद्ध करने की इच्छा करते हैं, वे ही साध्य की सिद्धि करनेवाले होते हैं ॥१७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

केषां कार्य्याणि सिध्यन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(वेद्या) यज्ञसामग्र्या (वेदिः) यज्ञभूमिः (सम्) सम्यक् (आप्यते) प्राप्यते (बर्हिषा) महता पुरुषार्थेन (बर्हिः) वृद्धम् (इन्द्रियम्) धनम् (यूपेन) मिश्रिता मिश्रितेन व्यवहारेण (यूपः) मिश्रितो व्यवहारयत्नोदयः (आप्यते) (प्रणीतः) प्रकृष्टतया सम्मिलितः (अग्निः) पावकः (अग्निना) विद्युदादिना ॥१७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा विद्वद्भिर्वेद्या वेदिर्बर्हिषा बर्हिरिन्द्रियं समाप्यते, यूपेन यूपोऽग्निना प्रणीतोऽग्निराप्यते, तथैव यूयं साधनैः साधनानि सम्मेल्य सर्वं सुखमाप्नुत ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः साधकतमेन साधनेन साध्यं कार्य्यं साद्धुमिच्छन्ति, त एव सिद्धसाध्या जायन्ते ॥१७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे उत्तम साधनांद्वारे साध्य प्राप्त करण्याची इच्छा बाळगतात. तीच ते साध्य प्राप्त करू शकतात.